भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक प्रार्थना / महमूद दरवेश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:24, 25 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महमूद दरवेश |संग्रह= }} <poem> जिस दिन मेरे शब्द धरती …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस दिन मेरे शब्द
धरती थे ...
मैं दोस्त था गेहूँ की बालियों का ।

जिस दिन मेरे शब्द
क्रोध थे
मैं दोस्त था बेड़ियों का ।

जिस दिन मेरे शब्द
पत्थर थे
मैं दोस्त था धाराओं का,

जिस दिन मेरे शब्द
एक क्रान्ति थे
मैं दोस्त था भूकम्पों का ।

जिस दिन मेरे शब्द
कड़वे सेब थे
मैं दोस्त था एक आशावादी का ।

लेकिन जिस दिन मेरे शब्द
शहद में बदले ...
मधुमक्खियों ने ढँक लिया
मेरे होठों को! ...


अनुवाद : अशोक पाण्डे