भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक बच्चे का बाग / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:40, 16 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुडयार्ड किपलिंग |अनुवादक=तरुण त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{..यह एक टी.बी. से पीड़ित, मोटर-गाड़ी से खिन्न बच्चे की भावना की कल्पना है; जिसे पूरे समय बगीचे में रहना पड़ता है, क्योंकि उस वक़्त इस रोग के इलाज में अधिक से अधिक ताजा हवा की हिदायत थी..}

अभी मेरे साथ कुछ भी बुरा नहीं है
सिवा कि, वो क्या कहते हैं, टी.बी. है
और इसी कारण मुझे रहना पड़े है
पूरे-पूरे दिन यहाँ बाहर बाग में

बाग हमारा बहुत बड़ा नहीं है
किनारों से कारें भी जाती ही हैं
और तीखी भोंपू की आवाज़ भी करें
जिससे कि छोटे बच्चे बहुत ही डरें

पर सबसे बुरा है जब वे ले जाते हैं
कार में जो गुर्राते-झटकाते हैं
खुली गाड़ियों के भयंकर पास से
बंद हो जाती है आँखें मारे डर के

पर जब मैं फिर यहाँ बैठा होता हूँ
क्रॉयडन के जहाज़ों को देखता हूँ
फ्रांस जा रहीं होती, गाती हुई जो
जैसे पियानो के तारों की सी धुन हो

जब मैं स्वस्थ-लायक हो जाऊँगा
चाहता हूँ जो, सच में कर पाऊँगा
करूँगा ना इस्तेमाल रेल-कार का
बल्कि हवाई जहाज इक रखूँगा सदा

उड़ता फिरूँगा इस जगह उस जगह
उस नर्स को आवाज़ से डरा दूँगा
औ' देखूँगा बादलों के ऊपर का जहाँ
और मोटर गाड़ियों पे तो थूका करूँगा