भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एडीएम खा-खा के बुतरू बीमार हो रहल / सिलसिला / रणजीत दुधु
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:55, 28 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत दुधु |अनुवादक= |संग्रह=सिलस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ए डी एम खा-खा के बुतरूवन बीमार हो रहल,
सरकारी नीति से जनता लाचार हो रहल।
बुतरूवन ले मइयन माँग रहल हे मनउती
देवतन धियान दीहा न´ निकले बिछँउती
साँप, चूहा, कीड़ा-मकोड़ा सब पार हो रहल
ए डी एम खा-खा के बुतरूवन बीमार हो रहल।
मास्टर न´ देखा सके हे बुतरू के डंटा
चाहे बन जाय बुतरूवन कतनउ लंगटा
नइतिकता सदाचार अब तार-तार हो रहल
ए डी एम खा-खा के बुतरूवन बीमार हो रहल।
छात्रवृत्ति पोशाक ले लिखा रहलो हे नाम
पढ़ाय लिखाय गुणवत्ता से न´ तनिको काम
अब साईकिल चढ़-चढ़ बुतरूवन फरार हो रहल
ए डी एम खा-खा के बुतरूवन बीमार हो रहल।
मुखिया अध्यक्ष सचिव हेडमास्टर के कमाय हे
बी ओ, बीडीओ, डी ओ तो मउसेरा भाय हे
खायवाला के बड़का लमहर कतार हो रहल
ए डी एम खा-खा के बुतरूवन बीमार हो रहल।