भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एमन मानव-जनम आर कि हबे? (बाउल) / बांग्ला

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:56, 26 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बांग्ला }} <poem> एमन मानव-ज...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

एमन मानव-जनम आर कि हबे?
मन या कर त्वराय कर एइ भावे।
अन्तर रूप सृष्टि करलने साँइ
शुनि मानवेर तुलना किछुर नाइ
देव-मानवगण करे अराधन जन्म निते मानवे
कत् भाग्यरे फल ना जानि,
मनेर पेयेछ एइ मानव तरणी,
येन मरा ना डोबे।।
एइ मानुषे हवे माधुर्य भजन,
ताइते मानुष रूप एइ गठिल निरंजन
एबार ठकिले आर ना देखि किनार,
लालन कय कातर भावे।।