भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐ-काश के वो मेरा कभी हमसफर होता / मोहम्मद इरशाद

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:08, 19 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मोहम्मद इरशाद |संग्रह= ज़िन्दगी ख़ामोश कहाँ / म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ऐ-काश के वो मेरा कभी हम हमसफर होता
मैं राह की दुश्वारियों से बाख़बर होता

अच्छा हुआ महफिल से वो जो रूठ के गया
वरना ये तमाशा यहाँ पे रात भर होता

गर आप ना आते तो जहाँ दश्त ही रहता
ये आदमी भी अब तलक जानवर होता

इंसान न बन जाते वो सारे आदमी
बातों में अगर तेरी ज़रा सा असर होता

‘इरशाद’ तेरा साथ मुझको मिलता गर सुनो
फिर देखते कैसा सुहाना ये सफर होता