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ऐ नार है इस जग मने तुज मुख अजब रौशन चराग़ / क़ुली 'क़ुतुब' शाह
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ऐ नार है इस जग मने तुज मुख अजब रौशन चराग़
देखे नहीं अजनों कहीं इस धात का नोखन चराग़
मुल्ला है ख़िदमत-गार तिल धन मुख की मसजीद में
पलकाँ बतियाँ काजल धुआँ देता है लहे लौ बन चराग़
धन देखने कूँ आएगी यक देस तूए उस सबब
फूलाँ करे शोलियाँ सीते रौशन हुआ गुलशन चराग़
उश्शाक़ परवाने हो कर चोंधेर थे पड़ना ककर
अप तन उपर हर यक रतन झमकाए है सू धन चराग़
क्या रस्म है तुज फाम नईं इश्क के मनधीर में
जो आशिकाँ सितमें अपे आ जालते अप मन चराग़