भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐ साक़ी-ए-मह-वश / अब्दुल हमीद 'अदम'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:19, 17 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अब्दुल हमीद 'अदम' }} Category:गज़ल <poeM> ऐ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐ साक़ी-ए-मह-वश ग़म-ए-दौराँ नहीं उठता
दुर्वेश के हुज्रे से ये मेहमाँ नहीं उठता

कहते थे के है बार-ए-दो-आलम भी कोई चीज़
देखा है तो अब बार-ए-गिरेबाँ नहीं उठता

क्या मेरे सफ़ीने ही की दरिया को खटक थी
क्या बात है अब क्यूँ कोई तूफ़ाँ नहीं उठता

किस नक़्श-ए-क़दम पर है झुका रोज़-ए-अज़ल से
किस वहम में सजदे से बयाबाँ नहीं उठता

बे-हिम्मत-ए-मर्दाना मसाफ़त नहीं कटती
बे-अज़्म-ए-मुसम्मम क़दम आसाँ नहीं उठता

यूँ उठती हैं अँगड़ाई को वो मरमरीं बाहें
जैसे के 'अदम' तख़्त-ए-सुलैमाँ नहीं उठता.