भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐंचा-बैंचा रूप तुम्हारा / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:28, 16 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=बच्च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पतलू जी, ओ पतलू जी,
थोड़ी सी अब सेहत बनाओ,
पतलू जी, अब सेहत बनाओ!

जब से देखा है पतलू जी
तुम उतने के उतने हो,
जैसे एक धागा लंबा सा
सचमुच ऐसे फितने हो।
थोड़ा सा अब घूम-घाम लो
थोड़ा ड्राई फ्रूट उड़ाओ!
पतलू जी, कुछ सेहत बनाओ!

परेशान सबको करता है
ऐचा-बेंचा रूप तुम्हारा,
मुखड़ा इतना दुबला है
दूर गगन में जैसे तारा।
सेब, अनार, संतरा खाओ
खा-पीकर कुछ रंग जमाओ,
और सुनाकर नए लतीफे
बढ़िया छक्का एक लगाओ!
पतलू जी, कुछ सेहत बनाओ!

रूखे-सूखे बने रहे तो
संग हवा के उड़ जाओगे,
और गिरे तो तिनका-तिनका
होकर यहीं बिखर जाओगे।
इससे अच्छा कसरत करके
थोड़ा अपनी भूख बढ़ाओ,
भूख बढ़ाकर दलिया खाओ
दूध पियो, बादाम चबाओ।
पतलू जी कुछ सेहत बनाओ!