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ओळख / हरीश बी० शर्मा

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जमीन अबेस म्हारी ही
जद बणावण री सोची एक टापरो
निरैंत पाणै री कल्पना में
करणी सोची कीं थपपणा
अपणापै री
एक भाव री जको उजास देवै
मन पंछी ने।
पण जमीन रो टुकड़ो
कई दे'र देवतो
ब्ल्यू प्रिंट खिचिजग्या
अर म्हारी कल्पना रा सैं धणियाप
अचकचा'र खिंडग्या
खड़ी हुवण लागी भींत्या
बणग्यो घर
एक ऊंची बिल्डिंग
जके में म्हारो धणियाप इत्तो ही हो
क म्हारै कारणै इणरी योजना बणी
राजी करण ने कइ लोग मिळ परा
बचावण ने फ्रस्टेशन सूं
नांव दियो म्हनै नींव रो भाटो
म्हारै जिसा घणखरा
इण बिल्डिंग हेठे
भचीड़ा खा-खा'र एक-दूजे सूं
धणियाप जतावंता आपरो
जाणन लाग्या हां
धीरे-धीरे आपरी ओळख
हुया संचळा
थरपिजग्या आप-आपरी ठौड़
पूरीजी म्हारी आस
निरैंत पाणै री कल्पना