भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कचरिया तोरो व्याव री / बुन्देली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:00, 27 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कचरिया तोरो व्याव री,
खरबूजा नेंवतें आइयो।
आलू दूल्हा भटा बराती,
चिरपोंटी सज ल्यइयों,
सजी गड़ेलू बजे तूमरा,
कुम्हड़ा ढोल बजैयो। कचरिया...
चले फटाका आतिशबाजी,
गुइयां आन चलैयो। कचरिया...
केला करेला भये मामा जू,
कैथा ससुर बुलैयो,
सेमे घुइयां भई गोरैयां,
मिरचे दौड़ लगैयों। कचरिया...
पांव पखरई में आये डंगरा,
कन्यादान कलीदो दैयो।
परियो सकारे उठियो अबेरे,
दुफरे चौका लगैयो। कचरिया...
मोड़ा मोड़ी मांगे कलेवा,
दो घूंसा दे दैयो। कचरिया...