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कछु नइया धना न्यारे की ठान मे भूलो मत झूठी शान मे / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कछु नइयां धना न्यारे की ठान में, भूलो मत झूठी शान में।
पुरी गली के कये मैं आके, रोजऊ लड़ती सास-ससुर से
देखो रानी कहें समुझाय के,
घर मिट जैहे नाहक आनवान में। भूलो...
सोचो गोरी अपने मन में, उनने दुख सये बालापन में।
हम खों लिये फिरे हाथन में,
दुख होने न दिया छिनमान में। भूलो...
माता-पिता ने कष्ट उठाये, हम खों इतने बड़े बनाये।
सूखी खाके समय बिताये,
आंच आने न दई कबऊ शान में। भूलो...
तुम जाने काहो करैयां, छोड़ो हठ अब पडूं मैं पैयां।
हम खें थूकत लोग लुगइयां,
चर्चा हो रई खेत खलिहान में। भूलो...
तुम तो धना न्यारे की ठाने, हम खों लोग देत है ताने।
भूलो...