भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कठिन समय / ज्योति रीता

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:53, 16 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्योति रीता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक समय
जब माँऐं रातों में
बार-बार उठकर
देखे बेटी को,
जब पिता
बार-बार
पूछे पत्नी से
गुड़िया घर पर ही है ना
घर पर ही रखना,
जब माँऐं
खुद ही
लगाने लगे पहरे
बेटियों पर,
शाम होते ही
वापस लौट आने की
देने लगे नसीहत,
हर क़दम पर
साथ रहने की सोचे,
जब पिता लाडली को
स्कूटी से आना-जाना
बंद करवा दे,
भाई खुले बालों से ऐतराज़ करे,
जब लड़कियाँ
देव-स्थलों में भी
मूर्तियों के सामने
रौंदी जाये
और देवता
असहाय अपाहिज हो जाये,
जब लड़कियाँ
स्कूल-कॉलेज
दोस्तों के बीच
असुरक्षित-सी रहने लगे,
अपनों के साथ भी
असहज महसूस करे
ममत्व भरे स्पर्श से
कतराने लगे,
जब बेटियाँ
सहमी-सहमी-सी
बंद कमरे में
सिसकने लगे,
तो समझो
कठिन समय से
गुजर रही है लड़कियाँ।