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कड़वे सत्य कहे / सोम ठाकुर

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सहनेवालों ने ही दुख दर्द सहे
मोटी ख़ालोंवाले तो दुर्दिन में
सुख में डूबे सुविधा के साथ रहे

आसान फूल का आँखों में गड़ना
कितना मुश्किल है मुश्किल में पड़ना
बहने वाले मझधारों के बीच बहे
जो बँधे रहे तट के त्याहारों से
वे समझदार कूलों के पास रहे

क्या अंतर जागों में, अनजागों में
अपनी ढफ्ली में, अपने रोगो में
दहने वाले चिनगारी बने दहे
जो खोए थे वंशी के तानो में
वे बस्ती कि लपटों से अलग रहे

आटा कितना गीला कंगाली में
मंत्रों वाले बैठे कव्वाली में
कहने वालों ने कड़वे सत्य कहे
अंधे मौसम कि नज़रों में चढ़कर
मिठ बोले सच्चाई से दूर रहे

अपनो ने अपनों में भेद किया
जिस पत्तल में खाया है, छेद किया
बस 'जय हे जय हे जय जय जय जय हे!'
गाकर भी अपनी आम सभाओ में
पूरब वाले पश्चिम के साथ रहे