भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कड़ी धूप में बादल के एक टुकड़े के नीचे / नवल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:24, 7 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवल |संग्रह= }} <Poem> कड़ी धूप में बादल के एक टुकड़े क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कड़ी धूप में बादल के एक टुकड़े के नीचे
मैं उससे पहली बार मिला था
सड़क पर धूप चमक रही थी
धूप में उसके पाँव
मानो समन्दर की लहरों पर चल रहे थे
पत्तों से छन कर आती धूप की तरह
हम एक-दूसरे को देख लेते थे
धूप आसमान की बुलंदियों को छू रही थी
धूप समन्दर की सतह पर बिखरी हुई
और हम दोनों बर्फ़ ढके पहाड़ों की तरह थे
जेठ की धूप
उसके सिर पर बादल का टुकड़ा
किसी आने वाली बारिश की शुरूआत थी