भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कभी-कभी / सुधा ओम ढींगरा

Kavita Kosh से
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:09, 26 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा }} <poem> कभी-कभी मन की उद्वेलना मस्ति...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी-कभी
मन की
उद्वेलना
मस्तिष्क में
स्मृतियों को
सपंदित
उत्तेजित
झंकृत कर
रतजगा है करवाती .

हृदय की
पोटली में बंधे
एहसास
अनुभूतियाँ
स्पर्श
खुल-खुल कर
विचलित हैं करते .

पुराने जर्जर
पीले पड़े पत्र
उद्धव का संवाद से
गोकुल में भटकती
ग्वालिन के
व्यथित हृदय
पीड़ित मस्तिष्क में
नई संचेतना
संचारित हैं करतें .

ऐसे में
कल्पना
सोच
मन में
तुम्हें
करीब पा
अपनी वेदना की पीड़ा
से निवृति हूँ पाती .