भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कभी कल्पना के पंखों पर भी उड़ लिया करो / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
कभी कल्पना के पंखों पर भी उड़ लिया करो
कविता को कुछ और समीप हृदय के किया करो।
यह संसार बड़ा विस्तृत है पा न सकोगे सब
कुछ पाओ, कुछ जीवन के अनुभव में जिया करो।
पीने में अधरों की अपनी सीमाएँ होतीं
नक्षत्रों की प्यास जगे तो दृग से पिया करो।
एहसासों के दरवाजों के खुलने की देरी
जैसी चाहो छवि प्राणों में बैठा लिया करो।
जिन आकृतियों के तन-मन पर धूल जम गयी हो
भावों के सागर में उनको नहला दिया करो।
अपने जीवन के कोलाहल से थक जाओ तो
दुनिया की इस हलचल से मन बहला लिया करो।