भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कभी नज़दीक आ जाना कभी कुछ दूर हो जाना / ओम प्रकाश नदीम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 1 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रकाश नदीम |अनुवादक= |संग्रह= }} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी नज़दीक आ जाना कभी कुछ दूर हो जाना ।
कभी मजबूर कर देना कभी मजबूर हो जाना ।

कभी मेआर से नीचे न गिरना आईना हो तुम,
अगर गिरना ही पड़ जाए तो चकनाचूर हो जाना ।

ये मौक़ा ही न देना राख का सौदा करे कोई,
कभी जलने की नौबत आए तो काफ़ूर हो जाना ।

मुझे हँसने की ख्वाहिश हो तो मैं तुझको हँसाता हूँ,
मुझे मसरूर करता है तेरा मसरूर हो जाना ।

न अब वो रंग है दिलकश न ख़ुशबू है मगर फिर भी,
चमन को फल रहा है फूल का मशहूर हो जाना ।

कोई तदबीर उसको भूलने की ढूँढ़ लूँ वर्ना,
बहुत तकलीफ़ देगा ज़ख्म का नासूर हो जाना ।