भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कभी यकीन की दुनिया में जो गए सपने / मयंक अवस्थी

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:21, 9 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मयंक अवस्थी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> कभी यकीन की दुनि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी यकीन की दुनिया में जो गए सपने
उदासियों के समंदर में खो गए सपने

बरस रही थी हकीकत की धूप घर बाहर
सहम के आँख के आँचल में सो गए सपने

कभी उड़ा के मुझे आसमान तक लाये
कभी शराब में मुझको डुबो गए सपने

हमीं थे नींद में जो उनको सायबाँ समझा
खुली जो आँख तो दामन भिगो गए सपने

खुली रहीं जो भरी आँखे मेरे मरने पर
सदा-सदा के लिए आज खो गए सपने