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कर दिया घर में उजाला / राम लखारा ‘विपुल‘

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फैलता था हर घड़ी साम्राज्य दुख का घोर काला।
चंद्रिका बन कर तुम्हीं ने कर दिया घर में उजाला।

यूं हमारे पास तम का
तोड़ भी कुछ कम नहीं था।
किंतु दुख है जुगनुओं के
बाजुओं में दम नहीं था।

तुम चले आए अधर पर स्वर सजाकर रोशनी के,
और हंसकर डाल दी फिर वैजयन्ती गीत-माला।

मुस्कुराहट जिंदगी में
आंसुओं पर तंज होती।
तुम न होते तो हमारी
जिंदगी शतरंज होती।
भाग्य की आराधना थी पूर्णता की ओर उन्मुख,
इसलिए खुद साधना ने पक्ष में सिक्का उछाला।