भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करते हैं पर काम नहीं करते हैं / रामश्याम 'हसीन'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:32, 26 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामश्याम 'हसीन' |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
करते हैं पर काम नहीं होते हैं सब
करके भी बदनाम नहीं होते हैं सब
दशरथ भी सब बाप नहीं बन पाते हैं
बेटे भी अब राम नहीं होते हैं सब
पाँव बढ़ाना थोड़ा सोच-समझकर ही
रस्ते भी अब आम नहीं होते हैं सब
दोष लगाना है बेहद आसान मगर
साबित तो इल्ज़ाम नहीं होते हैं सब
लाखों में से एक हुआ करते हैं वे
गाँधी जैसे नाम नहीं होते हैं सब