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कवि-कर्म / राजकमल चौधरी
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वेश्याओं के ऊँचे पलंग हैं, या जली हुई
लकड़ियाँ । कहीं जगह ख़ाली नहीं है गज़
भर, जहाँ बैठ कर लिखी जा सके गीता,
या गीतांजलि। ऊँचे पलंग हैं, या रसोई
घर की जली हुई लकड़ियाँ हैं ।