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कवि / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत

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कवि खोजता है भीड़ में
सखी की आँखे
कवि बन जाता है
पहरेदार सखी के सपनो का !

कवि भावुक
कवि शर्मीला
कवि श्रद्धालु
सखी की प्रतीक्षा करते-करते
माँगता है देवी से मन्नत

कवि कभी किसी का नाम नहीं लेता
आम्बेडकर, शाहू, फुले या फ़िर
चार्वाक और गौतम बुद्ध

लेकिन अगर नौबत आ ही गई
तो
कवि परमेश्वर का कॉलर पकड़कर
जवाब माँगने से भी पीछे नहीं हटता

कवि को नहीं आता
सीधा सरल हिसाब
कम्प्युटर तो क्या,
सादा केलकुलेटर भी नहीं
इस्तेमाल किया होता है कवि ने

चाय, सिगरेट के पैसे निकाले नहीं
कि हो जाती है कवि की जेब ख़ाली
तब भी कवि
कम्प्यूटर की अकड़ को
चलने नहीं देता

जन्मकुण्डली के साथ बायोडाटा
फ़ीड करने पर भी कम्प्यूटर
नाप नहीं पाता
कवि के मन की गहराई

कवि समय से आगे चलता है
फिर भी कवि को नहीं होता ध्यान
रेलवे लाइन का,
लाल नारंगी समन्दर के
जानलेवा पानी का

कवि चलता रहता है
चलता ही रहता है

भारी भरकम रेल-गाड़ी
निकल जाती है धड़धड़ाती हुई
दम तोड़ती, धड़कती कवि की देह से
धक-धक करती कवि की देह में
झर रहे हैं इनसानों के गीत-सी

मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत