भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता: एक (बुनियादी तौर पर...) / अनिता भारती

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:59, 16 अक्टूबर 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुनियादी तौर पर हर औरत
मन से स्वतंत्र होती है
उसे नहीं भाता ढोंग
पर फिर भी करती है
लम्बा टिकुला
चूड़ी-भरे हाथ
सिन्दूर से भरा माथा
उसे कभी नहीं लुभा पाता
फिर भी करती है अभिनय
इसमें रचे-बसे रहने का
क्योंकि यही वह रास्ता है
उसके जीने का...!