भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कश्मीर-चार / राजेश कुमार व्यास

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:14, 13 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>उजाड़ और वीरान पड़े हाउस बोटों से झांकती सूनी आंखे ढूंढती है- ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उजाड़
और
वीरान पड़े
हाउस बोटों से
झांकती सूनी आंखे
ढूंढती है-
बीते कल के
उजले अतीत को।