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कह दो खुल के अगर शिकायत है / हरि फ़ैज़ाबादी
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कह दो खुल के अगर शिकायत है
मुँह छुपाने की क्या ज़रूरत है
बात जो भी हो साफ़ ही कहना
गोल बातों से मुझको नफ़रत है
झूठ के दिन बहुत नहीं होते
कल भी थी अब भी ये सदाक़त है
क़त्ल को हादसा बना डाला
ये भला कौन सी महारत है
आज जो काम कर दे रिश्वत से
समझो कि उसमें कुछ शराफ़त है
मिट्टी हरदम दिमाग़ में रखना
ज़िंदगी की यही हक़ीक़त है
यूँ ही मज़बूत वो नहीं आख़िर
ताज की नींव में मोहब्बत है