भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कह रहे औज़ार साये से कि घबराये नहीं / विनय कुमार

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:54, 29 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय कुमार |संग्रह=क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है / विनय क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कह रहे औज़ार साये से कि घबराये नहीं।
पेड़ कटते हैं कहीं भी पेड़ के साये नहीं।

ज़ुल्म की आदत उन्हें चाहत सुक़ूते मर्ग की
ज़ख्म से उम्मीद रखते हैं कि चिल्लाये नहीं।

चोंच में अपनी दबाकर ले गयी चिड़िया गुलेल
फ़िक्र तो होगी उन्हें कि नज़ीर बन जाये नहीं।

ताउफक़ गीला अंधेरा, ग़ुम सुराग़े रोशनी
कुफ्ऱ है ग़र तू ज़हन में आग भड़काये नहीं।

क्या ज़रूरत वज्म की है तू अगर है रू-ब-रू
क्या ज़रूरत वज्म की गर तू नज़र आये नहीं।