भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहँवाँ ही कृष्ण जी के जनम भयेल / मगही

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:24, 11 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatSohar}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कहँवाँ<ref>किस जगह</ref> ही कृष्ण जी के जनम<ref>मगही के पश्चिम भाग में ‘जनम’ का प्रयोग मिलता है और पूर्वी भाग में ‘जलम’ का।</ref> भयेल,<ref>वंश-वृद्धिकारक</ref> भयेल,<ref>हुआ</ref> कहँवाँ ही बजे हे बधावा, जसोदा जी के बालक।
मथुरा में कृष्ण के जनम भयेल, गोकुला ही बाजे हे बधावा॥1॥
काहे के छूरी कृष्ण नार कटायब, काहे खपर असनान।
सोने के छूरी कृष्ण नार कटायब, रूपे खपर असनान॥2॥
नहाय धोआय कृष्ण पलंग सोवे, काली नागिनी सिर ठारा<ref>ठाढ़, खड़ा</ref>।
का तुम नागिन ठारा भई, हम है त्रिभुवन नाथ॥3॥

शब्दार्थ
<references/>