कहीं भी ढूँढ़ो कहाँ नहीं है, कोई भी उसके सिवा नहीं है / देवमणि पांडेय
कहीं भी ढूँढ़ो कहाँ नहीं है, कोई भी उसके सिवा नहीं है।
है नूर उसका हर एक शै में वो जलवागर है छुपा नहीं है।
सफ़र में आती हैं मुश्किलें जब, वो साथ देता है हर क़दम पर
वो रहनुमा है सभी का लेकिन ये राज़ सबको पता नहीं है।
वो बादलों में, वो बिजलियों में, वही धनक में, वही शफ़क़ में
निहाँ है फूलों में उसकी ख़ुशबू जमाल उसका छुपा नहीं है।
नफ़स-नफ़स में है उसकी आहट, उसी से क़ायम है दिल की धड़कन
वो सुबह मेरी, वो शाम मेरी, कभी वो मुझसे जुदा नहीं है।
ये चाँद-तारे, हवा,समन्दर, उसी के दम से है सारी क़ुदरत
वो सबका मालिक है उसके दर पे, है किसका सर जो झुका नहीं है।
जो सजदा करते हैं उसके दर पे, उन्हीं को हासिल है उसकी रहमत
उन्हें भला क्यूँ सुकूँ मिलेगा वो जिनके दिल में बसा नहीं है।