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कहें हम कौन तरियाँ ते समझ में कैसें आवैगी / उर्मिला माधव

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कहें हम कौन तरियाँ ते समझ में कैसें आवैगी,
कमी-बेसी कछू भी हो, तौ जे दुनियाँ सिखावैगी?

न हमने काऊ पै अंगुरी उठाई है अबई तक तौ
बिना संबाई के दुनियाँ, कहा अंगुरी उठावैगी?

हमारौ जी तौ दुनियाँ ते, हमेसा ही अलग सौ हो,
तौ फिर जे कौन सी दम पै हमें रस्ता बतावैगी?

तुम्हें जब गैल चलनी हो तौ अपने रंग में चलियों,
अगर दुनियाँ की मानौगे तौ जे दुनियाँ नाचावैगी,

है जब तक साँस तब तक कौ ही खेला ऐ सुनौ भैया,
कहूँ जो साँस रुक गई तौ न आवैगी न जावैगी...