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कह्र ढाया है वो उड़ानो ने / ज्ञान प्रकाश पाण्डेय
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कह्र ढाया है वो उड़ानो ने,
ख़ुदकुशी कर ली आसमानो ने।
तुम यक़ीं कर सकोगे बतलाऊँ,
धूप उगली है सायबानो ने।
घिघ्घियाँ बँध गईं शरारों की,
चुप्पियाँ तोड़ी ख़ाकदानो ने।
मेजबां यूँ न हो गए पत्थर,
गलतियाँ की हैं मेहमानों ने।
हर इदारे से बू सियासत की,
चैन लूटा है हुक्मरानो ने।