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क़त्ल नदी का / राजेन्द्र गौतम

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सब बन्द मदरसे
जारी जलसे
गलियाँ युद्धों का मैदान ।

अब कैसी होली
लाठी-गोली
भेंट मिली है जनता को
क्यों माँगे रोटी
क़िस्मत खोटी
गद्दी को बस जन ताको
थे ही कब अपने
सुख के सपने
पड़े रेत में लहूलुहान ।

कल नन्हीं चिडि़या
भोली गुडि़या
भेंट चढ़ी विस्फोटों में
अब तेरा टुल्लू
उसका गुल्लू
आँके इतने नोटों में
क्यों भावुक होते
गुमसुम होते ।
ले लो यह है नक़द इनाम ।

यह साँड़ बिफरता
आता चरता
फ़सलें भाईचारे की
कट शाख गिरेंगी
देह चिरेंगी
धार निकलती आरे की
कर क़त्ल नदी का
ध्येय सदी का
फैलाना बस रेगिस्तान ।