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क़ैदी के पत्र - 3 / नाज़िम हिक़मत

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झुका हुआ पृथ्वी को निहारता हूँ
शाखों को, जिन पर नीले बौर जगमगा रहे हैं, निहारता हूँ,
तुम वासन्ती पृथ्वी, प्रिये,
तुमको निहारता हूँ।

गाँव में रात्रि समय मैंने आग जला दी, उसे छुआ,
तारों के नीचे जलती हुई आग-सी तुम हो,
और मैं तुम्हारा परस करता, प्रिये,
तुमको निहारता हूँ।

मानवों के बीच हूँ, मानव को मैं प्यार करता हूँ
कर्म से मुझे प्रेम
मुझे विचारों से प्रेम है
मेरे संघर्ष बीच तुम मानव रूप धरे बैठीं, प्रिये,
तुम्हें प्यार करता हूँ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह