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काग़ज़ को कलम छुए हुए, एक ज़माना गुज़र गया / पल्लवी मिश्रा

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काग़ज़ को कलम छुए हुए, एक ज़माना गुज़र गया,
ग़ज़लों की लय में जिए हुए, एक ज़माना गुज़र गया।

माना कि उनकी आँखों से अब भी अक्सर पी लेते हे।,
मयखाने में मय पिए हुए, एक ज़माना गुज़र गया।

सुनते हैं शिकायत करना भी उल्फत का ही एक पहलू है,
हमको तो शिकवे-गिले हुए, एक ज़माना गुज़र गया।

मसरूफियत में ऐसे डूबे कि खुद से भी बातें कर न सके,
खुद अपनी आहट सुने हुए, एक ज़माना गुज़र गया।

अब तो नींद भी अक्सर आ जाती है, लंबी तन्हा रातों में,
यादों के दीपक बुझे हुए, एक ज़माना गुज़र गया।