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काफी / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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187.
अकथ कहानी को कहै, जापै प्रभु दाया।
सोवत जागी आत्मा, गुरु भेद लखाया॥
मूल मंत्र मूरति लखे, परिचय भइ काया।
नयन नासिका नेह ते, धुनि ध्यान लगाया।
अभि-अंतर हरि हरि रटे, घट तिमिर मिटाया।
सप्त पुरी के ऊपरे, मन पवन चढ़ाया॥
अभय पुरी आनंद भवो, तँह सुरति समाया।
बैठि संगती संतकी, धरनी सच पाया॥1॥