Last modified on 12 अप्रैल 2019, at 19:32

कारे कारे घन मतवारे / उमेश कुमार राठी

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:32, 12 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश कुमार राठी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कारे-कारे घन मतवारे
घिर आये अंबर में सारे
बिजुरी करती आतिशबाजी
दिव्य लगें हैं व्योम नजारे

मोर नचे है कूके कोयल
दृश्य न होते मन से ओझल
रंग बखेरा करतीं तितली
पुष्प सजीले लगते कोमल
कलियाँ खोल रखी हैं पाँखुर
भँवरे चूँम रहे अँगनारे

पानी है अनमोल धरोहर
उससे भरता नील सरोवर
पात गिरें तो लहरें उठती
लगता सारा नीर मनोहर
मीन थिरकती नित पानी में
अपने सुंदर अंग उघारे

श्याम बिना हर शाम अधूरी
मृग खोजे वन में कस्तूरी
हँसने को माथे की बिँदिया
माँग रही है मांग सिँदूरी
काजर मुस्कायें अँखियों में
जब दिल में घनश्याम पधारे

बंध बने अनुबंध बने हैं
जीवन में सम्बंध बने हैं
बतियाते हैं नैन परस्पर
रिश्ते प्यार सुगंध बने हैं
प्रश्न करे है लाज हया अब
पहले किसको कौन पुकारे

सरिता भरती जल सागर में
कवि सागर भरता गागर में
कुसुमाकर में भाव सँजोकर
काव्य कलोल करे आगर में
मीत मिले जब प्रीत मधुरिमा
रच जाते हैं गीत दुलारे