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कालक नियन्ता आ’ चाह / धीरेन्द्र

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कालक नियन्ता, समयक थर्मससँ, वर्षक एक कप चाह
उझिलिकें पीबि लेलक आ’ गम्भीर भए बैसि रहल।
सोचैत छी हम जे ई चाह जे हम बनौने छलहुँ ओकरा केहेन लगलै’ ?
केहेन लगलै ई चाह ओकरा ? दूध, लीकर, चीनी सभ ठीक छल ने ??
मुदा ओ गम्भीर भए बैसल अछि आ हम ओकर मुँह ताकि रहल छी !
आ ओ हमर कड़ियल बॉस जेकाँ गुम्म भेल बैसल अछि।
हम की करू! दोसर कपक लेल पानि चढ़ा देल अछि!!