भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कालाहाण्डी-7 / चन्दन सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:09, 30 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्दन सिंह |अनुवादक= |संग्रह=बारि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह अकाल
सूने आकाश से नहीं टपका है
उन्होंने रचा है इसे
इस पर
उनकी अँगुलियों के निशान हैं

उन्होंने रचा है कालाहाण्डी का करुण बंजर
घास का एक तिनका तक नहीं जिस पर
लेकिन ओट जंगलों से भी अधिक
कितनी आसानी से छिपा लेता है यह
उनके दाँत
उनके नाख़ून
उनके गोदाम

उन्होंने रचा है
कालाहाण्डी का अकाल
जिस पर कभी-कभी कोई छींटता है अन्न
जैसे अच्छत ।