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कालीबंगा: कुछ चित्र-11 / ओम पुरोहित ‘कागद’

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काली नहीं थी
कोई बंग
वस्त्र भी नहीं थे
मिट्टी सने जीवाश्म
जो तलाशे हैं आज

बोरंग चूनरी
केसरिया कसूम्बल में
सजी सुहागिनें
खनकाती होंगी
सुहाग पाटले
लाल-पीले-केसरिया

वक़्त के विषधर ने
डाह में डसा होगा
तब ही तो उतरा है
रंग बंग पर काला

कालीबंगा करता
सोनल अतीत को।


राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा