भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितने फूल / दिविक रमेश

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 9 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBaalKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितने अच्छे हो न वृक्ष
सजा दी है तुमने तो
मेरी छोटी-सी खिड़की पर
एक छोटी-सी टहनी
लदी फूलों से!

कितना मज़ा आता है न मुझे
देख-देख कर इसे!
हिलाते हो तो
और भी मज़ा।

देखने तुम्हें आऊंगी
पूरा का पूरा!
अभी बीमार हूं न?
नहीं निकल सकती
दरवाजे के बाहर,
मां जो कहती है!

पर आऊंगी
जरूर आऊंगी तुम्हें देखने
पूरा का पूरा!

अच्छा बताओ तो
कितने फूल आए हैं
इस बार तुम पर?