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किसी के दिल में रहूँगी / कविता भट्ट

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किसी के तो दिल में रहूँगी,
माना कि नज़र में नहीं रहूँगी।

यह न हुआ तो दिमाग में रहूँगी,
मुझे यक़ी है मैं बेघर नहीं रहूँगी।

चार दिन उदासी के निकल जाएंगे
पता है, उदास मैं उम्र भर नहीं रहूँगी।

उन्हें ज़िद है यह गुलशन सुखाने की,
मगर मैं तो बहार हूँ, बंजर नहीं रहूँगी।

प्यार, मुहब्बत-इबादत, शब्द तो नहीं,
ख्यालों में उनके मुख़्तसर नहीं रहूँगी।

शिकायतें बहुत हैं उन्हें यूँ तो मुझसे,
कल तड़पेंगे जिस पहर मैं नहीं रहूँगी।

फक्कड़ हूँ, मुझे याद करेगी दुनिया,
माना कल इस सफ़र में नहीं रहूँगी।.