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किसी लिबास की खुशबू / जॉन एलिया

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किसी लिबास की ख़ु
शबू जब उड़ के आती है
तेरे बदन की जुदाई बहुत सताती है

तेरे बगैर मुझे चैन कैसे पड़ता है
मेरे बगैर तुझे नींद
 कैसे आती है

रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निभानी होती

मुस्कुराए हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती

दिल में
 जिनका कोई निशाँ न रहा
क्यों न चेहरो पे वो रंग खिले

अब तो ख़ाली
 है रूह जज़्बों
 से
अब भी क्या तबाज़ से न मिले