Last modified on 3 अप्रैल 2020, at 22:46

किसी से न डरने को जी चाहता है / रंजना वर्मा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 3 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=ग़ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

किसी से न डरने को जी चाहता है।
गगन में विचरने को जी चाहता है॥

बहारों का मौसम है फिर लौट आया
कली का सँवरने को जी चाहता है॥

जहाँ पर मुहब्बत के हैं फूल बिखरे
वहीं से गुजरने को जी चाहता है॥

किया कोई वादा निभाया न तूने
यकीं फिर भी करने को जी चाहता है॥

बता रस्म दुनिया कराती बहुत कुछ
मगर अब मुकरने को जी चाहता है॥

न मंजिल किसी को मिली ज़िन्दगी में
डगर में ठहरने को जी चाहता है॥

लिया जन्म है गोद में जिस धरा की
उसी हेतु मरने को जी चाहता है॥