भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कीलै काळ नै / ओम पुरोहित कागद

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:15, 1 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित कागद |संग्रह=आंख भर चितराम (मूल) / ओम प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जपी तपी ज्यूं
तपै तावड़ै
एक टांग ऊभी
जूनी खेजड़ी
लूआं भेळी
सांय-सांय
उचारै मंतर
कीलै
काळ नै।