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कुछ अज्ञेय / चार्ल्स सिमिह / मनोज पटेल

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क्या वह ताज़ी सिंकी ब्रेड की सुगन्ध में थी
सड़क पर मुझसे मिलने चली आई थी जो ?
या अर्ध-निर्लिप्त नेत्रों वाली उस लड़की के चेहरे में
अपनी सफ़ेद ड्रेस ले जा रही थी जो धुलाई वाले के यहाँ से ?

जलकर काले पड़े उस मकान का दृश्य था
जहाँ गया था मैं काम की तलाश में कभी ?
पर्चियाँ बाँट रहा वह बिना दान्तों वाला वृद्ध था
धन्धा समेट रहे एक वस्त्र भण्डार के बारे में ?

या बच्चा-गाड़ी धलेकती वह औरत थी
ओझल होती हुई मोड़ पर, जिसके पीछे भागा था मैं ?
मानो उस गाड़ी में सोया बच्चा परिचित रहा हो मेरा,
और इस व्यस्त सड़क पर अकेला पाया हो उसने मुझे

समझ नहीं पाता ठीक-ठीक, महसूस होता है ऐसे इनसान की तरह
लम्बी बीमारी से उठकर निकला हो जो पहली बार,
दुनिया को देखता है अपने दिल से
और फिर वापस भागता है घर को अपने अनुभव भुलाने के लिए ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल