भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ दूर तक तो साथ कज़ा ले गई मुझे / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 16 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी |अनुव...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ दूर तक तो साथ कज़ा ले गई मुझे ।
फिर माँ की दुआ आके बचा ले गई मुझे ।

बरसा था मुझपे इस तरह भी नूर-ए-इलाही,
बारिश की एक बूँद बहा ले गई मुझे ।

ऐसा भी मोड़ आया इबादत में इश्क़ की,
दर तक ख़ुदा के मेरी रज़ा ले गई मुझे ।

बरसूँ मैं इससे पहले कि अश्क़ों की शक़्ल में,
सूरज की कड़ी धूप सुखा ले गई मुझे ।

जब भी कहीं पे तेरा तसव्वुर किया गया,
ख़ुशबु वहाँ बना के हवा ले गई मुझे ।

बच्चे की तरह रो रहा था राह में खड़ा,
उँगली पकड़ के किस की दुआ ले गई मुझे ।

जब-जब भी परेशाँ हुआ तब-तब कोई ग़ज़ल,
दुश्वारियों के दर से उठा ले गई मुझे ।