भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुम्भनदास / परिचय

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:33, 5 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachnakaarParichay |रचनाकार=कुम्भनदास }} कुम्भनदास अष्टछाप के कवियों में से ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुम्भनदास अष्टछाप के कवियों में से एक थे। इन्होंने सर्वप्रथम वल्लभाचार्य से दीक्षा ली थी। ये जमुनावती ग्राम के निर्धन किसान थे, किंतु कभी किसी का दान स्वीकार नहीं करते थे। राजा मानसिंह द्वारा दी गई सोने की आरसी, हजार मुद्राएँ और जमुनावती गाँव की माफी को भी इन्होंने अस्वीकार कर दिया था। सम्राट अकबर ने इन्हेंफतेहपुर सीकरी बुलाया और गाने की फर्माइश की। मैले-कुचैले कपडे और फटे जूते पहने ये दरबार में पहुँचे और यह पद बनाकर गाया :

भक्तन को कहा सीकरी सों काम।

आवत जात पन्हैया टूटी बिसरि गये हरि नाम॥

जाको मुख देखे अघ लागै करन परी परनाम॥

'कुम्भनदास लाल गिरिधर बिन यह सब झूठो धाम॥

राग कल्पद्रुम और राग रत्नाकर आदि में कुम्भनदास के लगभग 500 पद प्राप्त हैं। ये मधुर भाव के उपासक थे। इनके पदों में कृष्ण-प्रेम छलकता है।