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कूचा-ए-यार ऐन कासी है / वली दक्कनी

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कूचा-ए-यार ऐन कासी है
जोगी-ए-दिल वहाँ का बासी है

पी के बैराग की उदासी सूँ
दिल पे मेरे सदा उदासी है

ऐ सनम तुझ जबीं उपर ये ख़ाल
हिंदु-ए-हरव्‍दार बासी है

ज़ुल्‍फ़ तेरी है मौज जमना की
तिल नजिक़ उसके ज्‍यूँ सनासी है

घर तेरा है ये रश्‍क़-ए-देवल-ए-चीं
उस में मुद्दत सूँ दिल उपासी है

ये सियह ज़ुल्‍फ़ तुझ ज़नख़दाँ पर
नागनी ज्‍यूँ कुएँ पे प्‍यासी है

ऐ 'वली' जो लिबास तन पे रखा
आशिक़ाँ के नजिक़ लिबासी है