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कैसे तय हो कौन बुरा है किसका मस्लक अच्छा है / ओम प्रकाश नदीम
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कैसे तय हो कौन बुरा है किसका मस्लक अच्छा है ।
सब की अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना रस्ता है ।
मौसम के बल पर ऊँचाई पाने वाले बादल को,
मौसम रुख़ बदले तो पानी-पानी होना पड़ता है ।
यूँ मेरे विश्वास का शीशा चकनाचूर नहीं होता,
तुमने उसको तोड़ा फिर उसके टुकड़ों को तोड़ा है ।
इक आँधी में इतने पेड़ उखड़ते देखे हैं मैंने,
अब पत्ता भी हिलता है तो मेरा दिल काँप उठता है ।
मेरे अन्दर एक मुख़ालिफ़ था जो मुझसे लड़ता था,
अब या तो वो चुप रहता है या हाँ में हाँ करता है ।
हमने पर्वत के सीने पर इतने परचम लहराए,
फिर भी ये एहसास है बाक़ी पर्वत हमसे ऊँचा है ।