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को जी होलो औंणू? / केशव ध्यानी

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‘घुगति-बसूती’ घूरी घुगति डालि म,
उज्यालि मयलि घूरी घुगती डालि म
रीटि-फीरि आई ऋतु,
धड़म बाजी लाठी।
फूलु की फूल्यालि आई,
गिंवड् यूँ की बाटी॥ घुगति बसूती.
डाँडी हैरि डालि मौलि,
रंग-मती बँसूला।
धरती क कंठ आज,
फूलु की हंसुली॥ घुगति बसूती.
पंथ्या धौलू<ref>पर्वतीय फूल</ref> फ्योंलि<ref>पर्वतीय फूल</ref>, आरु
लय्या<ref>पर्वतीय फूल</ref> फूशे बुरांस<ref>पर्वतीय फूल</ref>।
घुंगटंयालि ठुमकदी आई,
झपन्यालों, हिलाँस॥ घुगति बसूती.
पैत्वल्यों पराज-आज,
कंठ की बडुली।
आज को जी होलु औंणू?
डुलदी च लटुली॥ घुगति बसूती.

शब्दार्थ
<references/>