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कोई किसी की तरफ है कोई किसी की तरफ़ / अनिरुद्ध सिन्हा
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कोई किसी की तरफ है कोई किसी की तरफ़
वो एक हम हैं जो रहते हैं ज़िन्दगी की तरफ़
ज़रूर उससे कोई दिल का मामला होगा
हमारी सोच भटकती है क्यों उसी की तरफ़
ग़मों ने इतनी मुहब्बत से हमको पाला है
क़दम उठे न हमारे कभी खुशी की तरफ़
वफ़ा का साज उठाए हुए न जाने क्यों
मैं चल रहा हूँ अँधेरीसी इक गली की तरफ़
भटक न जाए वो सहरा में दर बदर होकर
बढ़ाए हाथ समुंदर रहा नदी की तरफ